महाशय जयप्रकाश आर्य
वर्तमान प्रधान स्थानीय आर्य समाज
ग्राम गंगायचा-अहीर, डा0 बीकानेर,
जिला रेवाड़ी (हरियाणा)
मेरा जीवन बदल गया
मेरा जीवन बिल्कुल आवारा टाईप का था। बचपन में बहुत
शरारती था। पढ़ाई में कमजोर और आवारा हिंदी में पहला नम्बर था। मेरा
जीवन अंधकारमय था। विद्यार्थी जीवन में ही गुरूवर महाशय हीरालाल
| जी की शरण में आया उन्होंने मुझे एक श्लोक सुनाया और उसका अर्थ
बताया वो श्लोक था :
अभिवादनशीलस्य नित्यं वृद्धोपसेविनः: ।
चत्वारि तस्य वर्धन्ते आयुर्विद्या यशो बलम्।।
का उपदेश दिया।
मुझे रोजाना बोलने (भाषण देने) का अभ्यास कराया। जिसका
नतीजा यह हुआ कि किसी भी प्रकार के बड़े से बड़े मंचों पर किसी भी
विषय पर बोलता हूं तथा मंच संचालन करता हूं और परोपकार सेवा
अपना धर्म समझता हूँ। ये सब महाशय जी की प्रेरणा से ही है। मैं उनका
सदैव ऋणी रहूंगा। वास्तव में लौह पुरूष थे।
उस लौह पुरुष नर नाहर ने, सदा तूफानों से टक्कर ली।
सब लोग असम्भव कहते थे, वह बात उन्होंने सम्भव की ।।
क्या कर गुजरे इस जीवन में, ये नहीं किसी से छानी है।
चप्पे-चप्पे पर अंकित, उनकी सेवा त्याग निशानी है।।
महाशय जी का जीवन अति पावन अलबेला था।
आर्य समाज का प्रहरी सच्चा, दयानन्द का चेला था।
वे सबके थे, उनके सब थे, उनकी नजरों में कोई गैर ना था।
वे सबके हितैशी प्रेमी थे, उनका किसी से बैर ना था।।
एक बार मैं और महाशय जी भैरू के मेले में प्रचार के लिए जा रहे
थे। रात को गाड़ी द्वारा कुण्ड स्टेशन पर पहुंचे। विचार हुआ कि
रात को चंद्रमा रुकेंगे। गांव में रात को लोग जाग रहे थे। मैंने
पहुंचते ही सबको पहले राम-राम किया। जब सवेरे उठकर मेले में
जा रहे थे तो रास्ते में महाशय जी ने संकेत किया कि तुम्हारा भी कोई
धर्म है। बस आंखें खुल गई। उसके बाद फिर नमस्ते करने लगा।
गुड़गांव पुरानी आर्य समाज में एक बार मैं और महाशय जी रात को
रूके। प्रातः उठकर देखा कि कुंए पर बहुत गन्दगी है। वहां के
सेवक से खुरपा और झाडू मांगी। उसने कहा कि कई रोज से
मजदूर की तलाश में थे, मिल नहीं रहा। महाशय जी ने कहा मिल
गया आज मजदूर। महाशय जी ने पूरी सफाई कर डाली। इस
घटना से मेरे ऊपर बहुत ज्यादा प्रभाव हुआ।
एक बार हम गुड़गांव आर्य समाज के जलसे में गये थे। सो बीकानेर
के ही एक सज्जन जिन्होंने सन्यास ले रखा था वो स्टेज से बोल रहे
थे। मैंने कहा महाशय जी आप बोलने वालों को जानते हैं, उन्होंने
कहा नहीं, मगर दर्शनों का अच्छा विद्वान है। मगर स्वामी जी ने
महाशय जी को स्टेज से ही देख लिया था। जलसा समाप्त होते ही
स्वामी जी हमारे पास आये और महाशय जी के चरणों को हाथ
लगाया। महाशय जी ने मुझ से जानकारी चाही। क्योंकि महाशय
जी को कम दिखाई देता था। महाशय जी ने बड़ा पश्चाताप किया।
स्वामी जी ने कहा इन चरणों में बैठकर साधुता तक पहुंचा हूं।
4. इसी प्रकार हम दोनों रेवाड़ी रोड पर जा रहे थे। तो रास्ते में श्री
चुनीलाल एस.पी. मिल गये। देखते ही पैरों को हाथ लगाया। महा
जी ने पश्चाताप किया। एस.पी. साहब ने कहा कि इन चरण
प्रताप से एस.पी. तक पहुंचा हूं।
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